Top Secrets of Kamsutra -16 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-16 : संभोग क्रिया के वे आसन, जो निम्र स्तर के या बर्बर स्वभाव वाले करते हैं पसंद

 संभोग क्रिया के वे आसन, जो निम्र स्तर के या बर्बर स्वभाव वाले करते हैं पसंद

पिछले ब्लॉग में आपने संभोग क्रिया के उन आसनों के बारे में पढ़ा, जिनका प्रयोग शिष्ट समाज के लोग करते हैं। इस ब्लॉग में संभोग क्रिया के उन आसनों का विवरण दिया जा रहा है, जिनका प्रयोग निम्र स्तर के स्वभाव वाले लोग करते हैं।

जो भी व्यक्ति कामसूत्र के इस ब्लॉग को पढ़ेगा, उसके मन में यह प्रश्र अवश्य उठेगा कि वात्स्यायन जैसे उच्चकोटि के ऋषि ने ऐसे आसनों के बारे में क्यों बताया है? इसका उत्तर स्पष्ट है कि शास्त्र किसी एक व्यक्ति या एक  समाज के लिए नहीं हुआ करता। शास्त्र हमेशा अपने विषय का सम्पूर्ण विवरण ही प्रस्तुत करता है। वह हर पहलू पर  प्रकाश डालता है -  चाहे वह अच्छा हो या बुरा। आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र को लिखते समय यह स्पष्ट कर दिया है कि संभोग की कुछ क्रियाएं उन लोगों के लिए हैं, जो बर्बर स्वभाव वाले होते हैं या फिर जिनका स्वभाव पशुओं जैसा होता है। वैसे जिन आसनों को जिक्र इस ब्लॉग में किया जा रहा है, वे भी सभी संभोग क्रिया के आसन ही हैं, लेकिन इनका प्रयोग कुछ विशेष स्थलों पर ही होता है। ये आसन निम्रलिखित प्रकार से हैं :-

1. स्थिररत आसन :

पुरुष या स्त्री, दोनों में से कोई एक किसी खंभे या दीवार के सहारे खड़ा हो जाए और दूसरा उसे सामने से अपनी बाहों में भरकर संभोग करे, तो इस आसन को स्थिररत आसन कहते हैं। यह आसन तीन प्रकार से हो सकता है।

० जब पुरुष स्त्री की एक टांग को अपने हाथ से उठाकर संभोग करे, तो उसे व्यायत आसन कहते हैं।

० जब स्त्री अपनी टांगों को घुटनों की ओर मोडक़र  पुरुष के पैरों  पर अपने पैर रखकर खड़ी हो जाए और पुरुष उसके घुटनों को थामकर संभोग करे, तो उसे द्वितल आसन कहते हैं।

० अगर स्त्री अपनी टांगों को घुटनों की तरफ मोड़ ले और पुरुष उसकी जांघों को अपनी कोहनी का सहारा देकर संभोग करे तो उसे जनुकूर्पर आसन कहा जाता है।

2. अवलम्बितक आसन : 

जब पुरुष खंभे या दीवार से टिककर खड़ा हो जाए और अपने दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसाकर एक गद्दी बना ले। स्त्री अपने नितंब उस गद्दी पर रख ले तथा पुरुष के गले में बाहें डाल ले। उसके बाद अपनी जांघों को पुरुष की जांघों से लपेटकर संभोग कराए तो उसे अवलम्बितक आसन कहते हैं।

इस आसन में स्त्री अपने पैरों को खंभे या दीवार पर जमाती है और धक्के देकर नितंबों को हिलाती-डुलाती है, जिससे संभोग क्रिया बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो जाती है।

3. धेनुक आसन :

इस आसन में पशुओं की नकल की जाती है। जब स्त्री अपने हाथों को जमीन पर टिकाकर गाय की तरह खड़ी हो जाए और पुुरुष सांड की तरह उस पर चढक़र संभोग करे, तो उसे धेनुक आसन कहते हैं।

धेनुक आसन में विचित्रता :

धेनुक आसन में जो काम छाती पर किए जाते हैं, वही पीठ पर किए जाते हैं। जैसे हल्की-हल्की मार, दांतों व नाखूनों से प्रहार व आलिंगन आदि।

अन्य प्रकार की पशु लीलाएं :

जैसा कि गाय और सांड के संभोग का उदाहरण दिया गया है, उसी प्रकार दूसरे चार पैरों वाले जानवरों के संभोग को देखें व समझ लें। उनके संभोग में जो विशेषता देखें, उसी को प्रयोग कर लें। हालांकि ये सभी आसन धेनुक आसन जैसे ही हैं, फिर भी इनके बारे में बता देते हैं।

० शौन आसन : इसमें स्त्री कुतिया की तरह खड़ी हो जाए और पुरुष कुत्ते की तरह उस चढक़र संभोग करे, उस आसन को शौन आसन कहा जाता है।

० ऐणेय आसन : जब स्त्री हिरणी की तरह बनकर खड़ी हो जाए और पुरुष उस पर हिरण की तरह कूदकर संभोग करे, तो उस आसन को ऐणेय आसन कहा जाएगा। 

० छागल आसन : जब स्त्री बकरी की तरह खड़ी हो जाए और पुरुष बकरे की तरह संभोग करे, तो इसे छागल आसन कहा जाएगा।

० गर्दभाक्रांत आसन : जैसे गधा गधी पर चढ़ता है, उसी प्रकार पुरुष स्त्री को खड़ी करके उस पर चढ़े तो उसे गर्दभाक्रान्त आसन कहा जाएगा।

० व्याघ्रावस्कन्दन आसन : जैसे संभोग के समय शेरनी खड़ी होती है, उसी प्राकर स्त्री को खड़ा करके उस पर शेर की तरह कूदकर संभोग करने को व्याघ्रस्कन्दन आसन कहा जाएगा।

० गजोपमर्दित आसन : जैसे हाथी संभोग करते समय हथिनी का मर्दन करता है, उसी प्रकार पुरुष स्त्री को खड़ी करके उसके शरीर को मसले तो उसे गजोपमर्दित आसन कहते हैं।

० तुरगाधिरुढक़ आसन : जैसे घोड़ा घोड़ी से संभोग करता है, उसी प्रकार जब पुरुष स्त्री से करे, तो उसे तुरगाधिररुढक़ आसन कहते हैं।

ऊपर जितनी भी पशु लीलाओं का वर्णन किया गया है, उनका प्रयोग  पशुओं को संभोग में लगे वक्त देखने से बाद में करना चाहिए।

संघाटक : जब एक पुुरुष, एक स्त्री के साथ संभोग करता है तो उसे रत कहते हैं। जब पुरुष दो स्त्रियों के साथ संभोग करता है  या फिर एक स्त्री दो पुरुषों के साथ संभोग करती है, तो उसे संघाटक कहते हैं।

पुरुषों के संघाटक रत :

आपस में विश्वास करने वाली दो स्त्रियों के साथ जब एक पुरुष संभोग करता है, तो उसे संघाटक कहा जाता है। यह संभोग एक ही बिस्तर पर एक ही समय में किया जाता है।

इस आसन को करने की विधि तो यही हो सकती है कि पुरुष एक स्त्री के साथ तो संभोग करके उसी कामवासना को शांत करता रहे तथा दूसरी स्त्री को चुंबन व छेड़छाड़ करके उसी कामवासना को जगाता रहे। बाद में दूसरी के साथ संभोग करे तथा पहली की शांत हो चुकी कामवासना को जगाना शुरू कर दे।

इस सबंध में कोक महाराज ने कहा है - जब पुरुष दो स्त्रियों के साथ एक ही समय में संभोग करता है तो उसे संघाटक कहते हैं। इसका करने का ढंग यह है कि एक की योनि में लिंग द्वारा संभोग क्रिया करे तथा दूसरी की योनि में हाथ द्वारा गणेश क्रिया करे।

गोयूथिक विधि :

आपस में विश्वास करने वाली कई स्त्रियों के स ाथ जब एक ही पुरुष, एक ही बिस्तर पर, एक ही समय में संभोग करे, तो उसे गोयूथिक कहते हैं। इस प्रयोग में पुरुष स्त्रियों के बीच यूं रहता है, जैसे गायों के झुंड में अकेला सांड।

वारिक्रीडितक, छागल और ऐणेय विधियां :

जब पुरुष हाथी, बकरे और  हिरण की संभोग क्रियाओं को प्रयोग में लाता है, तो उसे क्रमश: वारिक्रीडितक, छागल और ऐणेय कहते हैं। इनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

० जैसे एक हाथी कई हथिनियों के साथ क्रीड़ा करता है, उसी प्रकार जब पुरुष कई स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करता है, तो उसे वारिक्रीडितक कहते हैं।

० जैसे एक बकरा कई बकरियों के साथ संभोग करता हे, उसी प्रकार जब एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ संभोग क्रिया करता है, तो उसे छागल कहते हैं।

० जैसे एक हिरन कई हिरनियों के  साथ संभोग क्रीड़ा करता है, उसी प्रकार जब एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ यही क्रीड़ा करता है, तो उसे ऐणेय कहते हैं।

स्त्रियों के संघाटक कम :

पुरुषों की तरह स्त्रियां का भी संघाटक कर्म होता है। जब एक स्त्री, एक ही बिस्तर पर, एक ही समय में दो पुरुशों से संभोग करवाती है, तो उसे संघाटक कहते हैं।

जब एक स्त्री, एक ही बिस्तर पर , एक ही समय में कई पुरुषों के साथ संभोग क्रिया में लिप्त होती है, तो उसे गोयूथिक कहा जाता है।

आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि एक पुरुष की कई स्त्रियां तो देखी भी जाती हैं और सुनी भी जाती हैं, लेकिन एक स्त्री के कई पुरुषों का होना कम देखने और सुनने में आता है।

वात्स्यायन के समय में ऐसे कई स्थान थे, जहां की स्त्रियां कई पुरुषों को रखा करती थीं। वात्स्यायन कहते हैं कि ग्रामनारी, स्त्री राज्य और बाल्हीक आदि प्रदेशों में ऐसी परंपरा है कि एक स्त्री कई पतियों की पत्नी होती है।

जिस प्रकार रखैलें रखी जाती हैं, उसी प्रकार इन प्रदेशों की स्त्रियां युवकों को गुलाम बनाकर घर में रख लेती हैं। इन स्त्रियों में बहुत ज्यादा काम अग्रि होती है, जिन्हें एक पुरुष नहीं बुझा सकता।

एक स्त्री का अनेक पुरुषों से संभोग करवाने का ढंग :

जब स्त्री एक हो और उसके साथ संभोग करने वाले पुरुष कई हों, तो वह नंबरवार एक-एक करके तो संभोग करवा ही सकती है, इसमें कोई विशेष बात नहीं है। इसके अलावा जिस ढंग से उसे आनंद मिलता हो, वही ढंग प्रयोग में लाना चाहिए।

जब एक स्त्री कई पुरुषों के साथ संभोग क्रिया में लिप्त होना  चाहे, तो उसे किसी एक पुरुष की गोद में बैठ जाना चाहिए। दूसरे से चुंबन करवाना चाहिए। तीसरे से नाखूनों का प्रहार तथा चौथे से दांतों के निशान बनवाने  चाहिएं। पांचवें से होंठ तथा छठे से स्तन चुसवाने चाहिएं। सातवें का लिंग अपनी योनि में ले लेना चाहिए और संभोग करवाना चाहिए।

इस संभोग क्रिया में सभी पुरुष बारी-बारी से अपना स्थान बदलते रहते हैं तथा अपना काम करते रहते हैं। ऐसे संभोग से ही स्त्री की प्रचंड कामवासना शांत होती है।

वेश्याएं और राज स्त्रियां :

आचार्य वात्स्यायन का कहना है कि इसी विधि से अनेक वैश्याएं भी संभोग कराती हैं। इस प्रकार पुरुष भी करते हैं। इसके अलावा राजमहल की कई स्त्रियां भी इसी विधि को अपनाती हैं।

जब कोई तगड़ा सा जवान राजमहल के जनानखाने तक पहुंच जाए तो वहां की स्त्रियां उसे घेर लेती हैं तथा उस जवान को उन सभी स्त्रियों को संतुष्ट करना पड़ता है।

गुदा मैथुन :

दक्षिण भारत के कुछ पुरुष गुदा-मैथुन भी करते हैं। इसे अधोरत कहा गया है। यह दो प्रकार का होता है। पहला वह, जिसमें पुरुष स्त्री की गुदा में लिंग डालकर संभोग करे तथा दूसरा वह, जिसमें पुरुष पुरुष की गुदा में लिंग डालकर संभोग करे। आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि यह बहुत ही घृणा करने लायक संभोग है। स्त्रियां इसे सख्त नापसंद करती हैं।

हालांकि यह आसन बताने के बाद पुरुष के संभोग करने के ढंग भी बताने चाहिएं थे। यह बताना चाहिए था कि जब पुरुष एक हो और स्त्रियां अधिक हों, तो संभोग किस प्रकार होना चाहिए, किंतु उन्हें यहां न कहकर आगे के ब्लाग्स में बताया जाएगा।

अंत में आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि मनोरंजन के लिए प्रेमियों को प्रकृति में आजादी से घूमना-फिरना चाहिए। विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों की संभोग क्रियाओं को बारीकी से ध्ययन करना चाहिए। पशु लीलाओं या पक्षी-लीलाओं का प्रयोग स्त्री का स्वभाव, गुण और इच्छा को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। ये अनूठे संभोग आसन स्त्रियों में जिज्ञासा पैदा करते हैं। इससे स्त्रियों में प्रेम बढ़ता है।

जो पुरुष अनूठे आसनों से संभोग करते हैं, स्त्रियां उन्हें बहुत प्रेम करती हैं। उनका आदर करती हैं तथा उनसे संभोग कराने के लिए आतुर रहती हैं।

आगामी ब्लॉग में आप पढ़ेंगे कि संभोग क्रिया के दौरान जोश को बढ़ाने के लिए किए जाने वाली मारपीट व सीत्कार के बारे में। 

Copywrite : J.K.Verma Writer

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