Top Secrets of Kamsutra -20 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-20 : स्त्री द्वारा पुरुष की तरह संभोग करना, नाड़ा खोलने से लेकर संभोग के लिए तैयार करने की विधियां

 स्त्री द्वारा पुरुष की तरह संभोग करना, नाड़ा खोलने से लेकर संभोग के लिए तैयार करने की विधियां

पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि वात्स्यायन ने जिन विशेष संभोग आसनों का जिक्र किया है, उनका वेदों में भी समर्थन किया गया है। अब इस ब्लॉग में हम पढ़ेंगे विपरीत रति के बारे में। जब कोई स्त्री पुरुष की तरह संभोग करती है, तो उसकी क्या-क्या विधियां हैं तथा इसके लाभ और नुकसान क्या-क्या हो सकते हैं। इसके साथ ही इस ब्लॉग में बताया जा रहा है कि पुरुष स्त्री का नाड़ा कैसे खोलता है तथा उसे धीरे-धीरे संभोग के लिए कैसे तैयार करता है।

विपरीत रति के संदर्भ में मंत्रकार का कहना है कि पुरुष को उल्टे, टेढ़े, खड़े होकर तथा विपरीत रति के आसनों का प्रयोग संभोग के दौरान नहीं करना चाहिए। इन आसनों से यदि गर्भ ठहर गया तो विकलांग संतान उत्पन्न हो सकती है।

आचार्य वात्स्यायन कहतेहैं कि पुरुष जब संभोग क्रिया में थक जाता है, तो स्त्री को चाहिए कि वह पुरुष के ऊपर आकर उसी की तरह आचरण करे। इस आचरण को ही पुरुषायित या विपरीत रति कहा जाता है। विपरीत रति के कारण, भेद तथा लाभ-हानियों का विवरण वे इस अध्याय में विस्तारपूर्वक देते हैं। आइए, पहले इसके कारणों पर प्रकाश डालते हैं। 

थके हुए की मदद :

लगातार संभोग करते-करते जब पुरुष थक जाए, किंतु स्खलित न हो और स्त्री की कामवासना भी शांत न हुई हो, तब स्त्री को चाहिए कि वह पुरुष की सलाह से उसे नीचे करके स्वयं ऊपर आ जाए तथा पुरुष की तरह संभोग करे। इससे पुरुष की सहायता भी हो जाएगी तथा दोनों परम आनंद की प्राप्ति करके स्खलित हो सकेंगे। इसमें स्त्री यह अवश्य ध्यान रखे कि  पुरुष की इच्छा के विरुद्ध उसके ऊपर न आए, वर्ना बेशरम समझी जाएगी।

अपनी इच्छा : 

स्त्री पति की सलाह लिए बिना भी उसके ऊपर आकर संभोग कर सकती है। ऐसा तभी हो सकता है, जब उसका अपने पति पर विश्वास हो तथा पति का भी उस पर विश्वास हो।

प्रियतम की इच्छा से :

यदि स्त्री यह जान जाए कि उसके प्रियतम को विपरीत रति का शौकहै, तो चाहे उसने आज्ञा न दी जो या चाहे वह थका हुआ न हो, वह उसके ऊपर चढक़र संभोग करके उल्लास को बढ़ा सकती है।

विपरीत रति का पहला ढंग :

पुरुष संभोग कर रहा है तथा स्त्री उसके ऊपर आना चाहती है। ऐसे में वह ऊपर आए तो ऐसे ढंग से आए कि उसकी योनि में से पुरुष का लिंग बाहर न निकलने पाए। यह पहली विधि है। इस विधि में संभोग में जो आनंद आ रहा था, वह जारी रहेगा। उसका क्रम टूटने न पाएगा। यदि दोनों के गुप्तांग एक दूसरे से अलग हो गए, तो संभोग ठहर जाएगा। आनंद का क्रम टूट जाएगा तथा संभोग में वह प्रसन्नता नहीं रहेगी, जो पहले चल रही थी।

दूसरा ढंग :

यदि संभोग को अपनी इच्छा से स्त्री पुन: कराना चाहे या ऐसी इच्छा पुरुष की हो, तो स्त्री को चाहिए कि वह शुरू से ही पुरुष के ऊपर चढक़र संभोग करने लग जाए। यह दूसरी विधि है। इसके अलावा और कोई तीसरी विधि नहीं है।

पुरुष के स्वभाव की नकल : 

जब स्त्री पुरुष के ऊपर चढक़र संभोग करने लगती है, तो उसकी चोटी में गुंथे हुए फूल बिखर जाते हैं। हंस-हंसकर उसकी सांसें फूल जाती हैं। पुरुष का मुंह चूमने के लिए जब वह अपना मुंह उसके करीब ले जाती है, तो उसके स्तनों से पुरुष की छाती दबने लगती है।

संभोग करते समय जब वह हिलती है, तो उसका सिर तेजी से हिलने लगता है। वह पुरुष की तरह संभोग करने की पूरी-पूरी नकल करती है। नाखूनों का प्रयोग, दांतों का प्रयोग, मारपीट, चुंबन, आलिंगन आदि संभोग क्रियाएं वह पुरुष की तरह ही करती है और विजेता की भांति हंसती हुई कहती है - पहले तुमने मुझे नीचे गिराकर भोगा था। अब मैं तुम्हें नीचे गिराकर भोग रही हूं। बदला चुका रही हूं।

अंत में जब वह स्खलित हो जाती है, उसकी कामवासना शांत हो जाती है, तो वह सकुचाकर, शरमाकर आंखें मूंद लेती है और थककर बिस्तर पर लेट जाती है। इतना हो जाने पर भी वह पुरुष की नकल करना नहीं छोड़ती। जिस प्रकार संभोग के अंत में पुरुष स्त्री को प्यार करता है, उसी ढंग से वह पुरुष को प्यार करने लगती है।

आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि विपरीत रति में स्त्रियां पुरुषों के जिन प्रयोगों की नकल करती हैं, उनके बारे में अब बताते हैं। स्त्री के प्रति होने वाली पुरुष की कार्यवाही दो प्रकार की होती है। पहली कार्यवाही ऊपरी होती है, जबकि दूसरी कार्यवाही संभोग के बाद शुरू होती है, जिसे भीतरी कार्यवाही कहा जाता है।

बाहरी विधियां : जब तक बाहर की विधियों का प्रयोग न किया जाए, भीतर की कार्यवाही शुरू नहीं हो सकती, इसलिए पहले बाहर की विधियों का ही वर्णन करते हैं।

नाड़ा खोलने की विधि : 

जब तक नाड़ा नहीं खुलेगा, तब तक दूसरी विधियों का प्रयोग करना तथा संभोग क्रिया शुरू करना कठिन है, इसलिए पहले नाड़ा खोलने की विधि बताई जा रही है। इस विधि में जब स्त्री पुरुश के निकट आ जाए तो पुरुष को चाहिए  कि वह उसे अपने निकट लिटाकर उससे मीठी-मीठी बातें करना शुरू कर दे। जब उसे यह लगने लगे कि स्त्री उन बातों में खो गई है, तो उसे नाड़े पर अपना हाथ डाल दे। यदि स्त्री उसे रोके या झगड़ा करने लगे तो पुरुष को चाहिए कि वह उसके गालों को बार-बार चूमकर, फुसलाकर या फिर मिन्नत करके उसकी कामवासना को उत्तेजित कर दे।

हाथ फेरना :

यदि फिर भी स्त्री न माने और पुरुष का लिंगा पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका हो, तो  पुरुष को चाहिए कि वह उसकी आंखों, जांघों, कूल्हों और स्तनों को बार-बार सहलाए, मसले, दबाए ओर थपथपाए। ये सभी अंग स्त्री की कामवासना के केंद्र होते हैं तथा स्पर्श पाकर ये उत्तेजना पैदा करते हैं।

पहली बार संभोग के समय : 

यदि स्त्री पहली बार संभोग करवा रही है,तो वह लज्जा के कारण दोनों जांघों को भींचकर अपने गुप्तांग को छिपाने का प्रयास करती है। ऐसे में पुरुष को चाहिए कि पहले उसकी जांघों के बीच हल्का-हल्का हाथ फेरे, ताकि वे कुछ चौड़ीहो सकें। उसके बाद ही दूसरी विधियों को प्रयोग में लानी चाहिएं।

कन्या के साथ संभोग :

यदि किसी ऐसी कन्या के साथ संभोग करना हो, जिसे पहले किसी पुरुष ने नहीं भोगा हो, तो उसके साथ भी वैसा ही करना चाहिए, जैसा पहली बार संभोग करवा रही किसी स्त्री के साथ किया जाता है। ऐसी कन्या भी लाज से दोनों जांघों को भींच लेती है, अत:  पहले उसकी जांघों के बीच धीरे-धीरे हाथ चलाना चाहिए, उसके बाद नाड़ा खोलना चाहिए, फिर हाथ फेरना चाहिए।

विशेष बात : 

जो स्त्री पहली बार संंभोग करवा रही हो या ऐसी कन्या जिसे पहले किसी ने नहीं भोगा हो, इन दोनों के साथ संभोग करने की विधि एक जैसी है। कई बार ऐसा होता है कि कन्या नायिका संभोग के पहले अपनी जांघों को भींचने के साथ-साथ अपने स्तनों को भी हाथों से ढंकने का प्रयत्न करती है। साथ ही कंधों को भी भींच लेती है। ऐसे में पुरुष को चाहिए कि वह उसकी जांघों के बीच में हाथ डालकर उसके पेडू को हाथ से धीरे-धीरे सहलाए। साथ ही उसके कंधों, कांखों, गर्दन और गले को भी सहलाता रहे।

स्वैरिणी स्त्री के साथ : 

जो स्त्री कामवासना से भरी हुई हो तथा बिना किसी शर्म-लिहाज के किसी के साथ भी संभोग क्रिया में लिप्त हो जाती हो, उसे स्वैरिणी कहा जाता है। ऐसी स्त्री से संभोग करते समय अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं होती। उसके साथ मनचाहा व्यवहार किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर अगर उसका मुंह चूमना हो, तो उसके बालों को निर्दयतापूर्वक पकडक़र, ठोडी को हाथ की ऊंगलियों से दबाकर फिर मुंह को चूमे। इससे स्वैरिणी स्त्री को अधिक आनंद आएगाञ्।

जिन स्त्रियों या कन्याओं को प्रथम संभोग में लज्जा आ रही हो, जो आंखें मीच रही हों, जांघें भींच रही हों, अपने स्तनों को छिपाने का प्रयास कर रही हों, उनके बारे में आचार्य वात्स्यायन का कहना है पुरुष को एक हाथ उनके माथे पर रख देना चाहिए तथा दूसरे हाथ से उनकी ठोडी को धीरे-धीरे चुंबन के लिए ऊपर उठाना चाहिए।

ऐसे में वह स्त्री या कन्या मारे लज्जा के अपनी आंखें मूंद लेगी। तब पुरुष को आलिंगन तथा चुंबन द्वारा उसकी झिझक को दूर कर देना चाहिए ताकि वह संभोग के लिए तैयार हो सके।

इस ब्लॉग में आपने सबसे पहले विपरीत रति के बारे में पढ़ा। यानि उन सभी विधियों के बारे में पढ़ा, जिनका प्रयोग करके कोई स्त्री पुरुष के साथ संभोग करती है। इसके बाद आपने पढ़ा कि किसी स्त्री को संभोग के लिए कैसे तैयार किया जाता है। उसका नाड़ा कैसे खोला जाता है तथा धीरे-धीरे उसे संभोग के लिए कैसे तैयार किया जाता है।

आगामी ब्लॉग में आप पढ़ेंगे कि जब स्त्री कामोत्तेजित हो जाए तो उसकी पहचान क्या होती है तथा उस स्त्री के साथ संभोग किन-किन विधियों से किया जा सकता है।

Copywrite : J.K.Verma Writer
Contact : 9996666769
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