Top Secrets of Kamsutra -21 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-21 : संभोग के लिए उत्तेजित हो चुकी स्त्री की पहचान, उससे संभोग करने व उसे तृप्त करने की विधियां

 संभोग के लिए उत्तेजित हो चुकी स्त्री की पहचान, उससे संभोग करने व उसे तृप्त करने की विधियां 

          पिछले ब्लॉग में आपने सबसे पहले विपरीत रति के बारे में पढ़ा। यानि उन सभी विधियों के बारे में पढ़ा, जिनका प्रयोग करके कोई स्त्री पुरुष के साथ संभोग करती है। इसके बाद आपने पढ़ा कि किसी स्त्री को संभोग के लिए कैसे तैयार किया जाता है। उसका नाड़ा कैसे खोला जाता है, हाथ कैसे फेरा जाता है तथा धीरे-धीरे उसे संभोग के लिए कैसे तैयार किया जाता है। इस ब्लॉग में आप पढ़ेंगे कि जब स्त्री कामोत्तेजित हो जाए तो उसकी पहचान क्या होती है तथा उस स्त्री के साथ संभोग किन-किन विधियों से किया जा सकता है।

जब स्त्री उत्तेजित हो जाए तथा उसमें कामवासना जाग जाए तो उसका नीचे का वस्त्र उतार देना चाहिए तथा संभोग के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जब योनि में लिंग का प्रवेश हो जाए तो पुरुष को स्त्री के  हाव-भाव, नाज-नखरों और कटाक्षों से उसकी रुचि और इच्छा को समझकर उसे साथ ऐसा व्यवहार करे, जिससे वह अधिक से अधिक संभोग का आनंद प्राप्त कर सके।

चेष्टाओं से सुख की पहचान : 

आचार्य सुवर्णनाभ का कहना है कि संभोग के समय स्त्री अपने शरीर के जिन-जिन अंगों को देखती है, कामकला में चतुर पुरुष उसी से समझ जाते हैं कि वह इन्हीं अंगों का आलिंगन, चुंबन और मर्दन चाहती है। तब पुरुष उसके उन्हीं अंगों को सहलाए, मसले, नाखूनों व दांतों से प्रहार करे या फिर धीरे-धीरे थपथपाए। इससे स्त्री को आनंद मिलता है। वह शीर्घ ही स्खलित होकर तृप्त हो जाती है।

ये बातें स्त्रियां बताया नहीं करतीं। पुरुषों को समझना होता है। इसके अलावा योनि के जिस भाग पर लिंग रगडऩे से स्त्री अपनी आंखों को फिराए, पुरुष को समझ जाना चाहिए कि वही उसके सुख का स्थान है। उसी स्थान पर ही बार-बार लिंग को रगडऩा चाहिए। इससे स्त्री को भरपूर सुख मिलता है तािा वह शीर्घ ही स्खलित हो जाती है।

जो पुरुष स्त्री के स्वभाव, इच्छा और सहनशक्ति के अनुसार संभोगकला में उससे व्यवहार करता है, वह उसे वशीभूत कर लेता है।

स्त्रियों के कामोत्तेजित होने की पहचान :

स्त्रियों के कामोत्तेजित होने की पहचान आचार्य वात्स्यायन निम्रलिखित लक्षणों से करते हैं।

० स्त्रियां अपने शरीर के अंगों को ढ़ीला छोड़ देती हैं।

० आंखें मूंद लेती है।

० निर्लज्ज बन जाती है।

० संभोग कराने में जरा भी संकोच नहीं करती।

० पुरुष से बार-बार लिपटती है।

० अपनी योनि को लिंग से बार-बार रगड़ती है।

० लिंग को खींचकर योनि के अंदर ले जाती है।

भडक़ी हुई कामवासना की पहचान :

संभोग के समय में जब स्त्री की कामवासना चरम  पर पहुंच जाती है, तब उसमें निम्रलिखित लक्षण आ जाते हैं।

० शरीर कांपने लग जाता है।

० स्त्री पागल सी हो उठती है।

० संभोग करते हुए पुरुष को दबोचकर उसे जोर-जोर से धक्के मारने के लिए कहती है।

० पुरुष को मुक्के मारने लगती है।

० लिंग को योनि में से बाहर नहीं निकलने देती।

० हाथ-पैर पटकने लगती है।

० पुरुश के स्खलित हो जाने पर वह पुरुश पुरुष पर चढ़ बैठती है तथा अपनी कमर व पेडू को इधर-उधर हिलती हुई अपनी योनि को लिंग पर  रगड़ती है।

० वे सभी हरकतें स्त्री तब करती है, जब पुरुष तो स्खलित हो जाता है, परंतु उसकी कामवासना तृप्त नहीं हो पाती।

गणेश क्रिया का प्रयोग :

ऐसी हालत से बचने के लिए वात्स्यायन यह सुझाव देते हैं कि पुरुष को संभोग करने से पहले गणेश क्रिया का प्रयोग करना चाहिए। आलिंगन,  चुंबन इत्यादि का भरपूर प्रयोग कर लेने के बाद अपनी मध्यमा व अनामिका ऊंगलियों को मिलाकर उसे हाथी की सूंड का रूप देकर उसे योनि के अंदर-बाहर करना चाहिए। गणेश क्रिया से स्त्री की योनि में स्त्राव होने लगता है। वह भीगने लगती है। जब योनि अच्छी तरह गीली हो जाए, तभी उसमें लिंग प्रवेश करके संभोग करना चाहिए।

योनि में धक्के लगाने के भेद :

पुरुष जब स्त्री की योनि में अपना लिंग प्रवेश कर लेता है, उस समय धक्के लगाने की क्रिया की जाती है। यह क्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक स्त्री-पुरुष दोनों स्खलित नहीं हो जाते। स्खलित होने के लिए वे जो प्रयत्न करते हैं, उन्हें उप्सृप्त कहा जाता है।

उपसृप्त के दस भेद हैं, जिनका विस्तृत विवरण आगे दिया जा रहा है।

1. उपसृप्तक : 

यह एक सामान्य सी विधि है तथा इसका सब जगह प्रचलन है। इस विधि में पुरुष अपने लिंग को धीरे-धीरे स्त्री की योनि में प्रविष्ट करता है। उसके बाद धीरे-धीरे धक्के लगातर लिंग को अंदर-बाहर करता है। संभोग करते-करते जब उसे यूं लगने लगता है कि वह स्खलित होने वाला है, तो वह अपने धक्कों की रफ्तार को तेज कर देता है तथा स्खलित होने तक यही क्रम जारी रहता है।

2. मन्थन :

इस विधि में पुरुष अपने लिंग को पकडक़र स्त्री की योनि में डालता है तथा उसके बाद योनि को लिंग से दही की तरह मथता है।

3. हुल :

इस विधि में स्त्री की कमर को नीचा कर लिया जाता है। उसके  बाद पुरुष एक ही धक्के मे लिंग को योनि में डाल देता है। इस विधि से लिंग योनि की आधी गहराई तक ही पहुंच पाता है। वह योनि में डंक मारता हुआ सा लगता है इसलिए इसे हुल कहा जाता है।

4. अवमर्दन :

इस विधि में हुल के विपरीत किया जाता है। इसमें स्त्री की कमर को ऊंचा कर दिया जाता है और पुरुष एक ही धक्के से अपना पूरा लिंग योनि की गहराई तक पहुंचाकर संभोग करता है।

5. पीडि़तक

इस विधि में पूरी तरह से लिंग को योनि में प्रविष्ट करके तेजी से  तथा पूरा जोर लगा-लगाकर पुरुष अपनी योनि को पीडि़त करता है तो उसे पीडि़तक कहते हैं।

6. निर्घात :

इसमें पुरुष संभोग करते-करते अपने लिंग को पूरा बाहर निकालकर पुन: भीतर धकेल देता है। इस प्रकार वह पीछे हट-हटकर धक्के मारता है।

7. वराहपात :

जैसे सूअर अपनी थूथन से जमीन खोदता है, उसी प्रकार जब पुरुष अपने लिंग से स्त्री की योनि को भंभोडे तथा हट-हटकर धक्के मारे तो उसे वराहघात कहते हैं।

8. वृषाघात : 

जब पुरुष स्त्री की योनि के दोनों ओर बारी-बारी से लिंग को रगड़ते तो उसे वृषाघात कहते हैं।

9. चटकविलसित :

जब पुरुष के स्खलित होने का समय आता है तो वह स्त्री की योनि में गौरैया चिडिय़ा की तरह, भीतर ही भीतर दो-तीन धक्के लगाता है। इस विधि को चटकविलसित कहते हैं।

10. संपुट :

स्खलित होने के समय जब स्त्री-पुरुष के गुप्तांग आपस में बुरी तरह से गुंथ जाते हैं, तो उस विधि को संपुट कहा जाता है।

प्रयोग करने की विधि :

आचार्य वात्स्यायन का कहना है कि ऊपर दी गई विधियों में जो विधि स्त्री की अनुकूलता, प्रसन्न्नता और इच्छा के अनुसार हो, पुरुष को वही प्रयोग में लानी चाहिए। 

स्त्रियां कैसे करती हैं नकल :

अब उन विधियों का जिक्र करते हैं, जिनकी नकल स्त्रियां किया करती हैं। स्त्रियां विपरीत रति में पुरुषों  की तीन प्रकार से नकल करती हैं।

1. संदंश :

जब स्त्री घोड़ी की तरह अपनी योनि में पुरुष के लिंग को दबाए रखे, बाहर न निकलने दे, तो उसे संदंश कहा जाता है।

2. भ्रमरक : 

जब स्त्री अपनी योनि में पुरुष का लिंग लेकर, अपने पैरों को सिकोडक़र और पुरुष के शरीर पर दोनों हाथों से अपने शरीर को रोककर कुम्हार के चाक की तरह धूमे तो उस विधि को भ्रमरक कहते हैं। इस विधि में बहुत अभ्यास की जरूरत है।

इसमें नायक का काम यह देखना है कि कहीं घूमते समय दोनों के गुप्तांग अलग न हो जाएं, इसलिए पुरुष को चाहिए कि वह भ्रमरक के प्रयोग में अपनी कमर को ऊंचा कर दे।

3. प्रेंखोलित :

विपरीत रति में जब पुरुष का लिंग स्त्री की योनि में हो, ऐसे में पुरुष स्त्री के दोनों नितंबों को पकडक़र स्त्री को ऊपर-नीचे या दाएं-बाएं किसी झूले की तरह झुलाए, तो उसे प्रेंखेलित कहते हैं।

आराम करने का ढंग :

जब पुरुश के ऊपर आकर स्त्री संभोग कर रही हो और बिना स्खलित हुए थक जाए तो उसे चाहिए कि वह  गुप्तांगों को जुदा किए बिना अपना माथा पुरुष के माथे पर रख दे तथा कुछ क्षण आराम कर ले।

पुरुष के ऊपर आने का समय :

यदि आराम कर लेने के बाद भी स्त्री स्वयं को थका हुआ अनुभव करे, तो उसे फिर पुरुष के नीचे आ जाना चाहिए तथा पुरुष को उसके ऊपर आकर रुके हुए संभोग को पुन: शुरू कर देना चाहिए।

इस पूरे प्रकरण का सार :

विपरीत रति के बारे में आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि  जब तक स्त्री संभोग के समय पुरुष के नीचे रहती है, वह संकोच, लज्जा या शीलता के कारण अपने स्वभाव को छिपाए रखती है। लेकिन जब वह विपरीत रति में पुरुष के ऊपर आ जाती है, तो कामवासना से बेचैन होकर अपना वास्तविक रूप प्रकट कर देती है। वह अपना स्वभाव नहीं छिपा सकती।

स्त्री का शील, स्वभाग, आचरण व कामवासना को जांचने के लिए पुरुष को चाहिए कि वह उसे अपने ऊपर आने दे। ऐसा करने से स्त्री की लज्जा समाप्त हो जाएगी तथा वह पूरे जोश के साथ संंभोग क्रिया में लगकर भरपूर आनंद देगी।

विपरीत रति की मनाही : 

रजस्वला, गर्भवती, प्रसूता यानि जिसका हाल ही में बच्चा हुआ हो, मृगी यानि छोटी योनि वाली तथा अधिक मोटी स्त्री को विपरीत रति नहीं करनी चाहिए। इसका कारण यह है कि रजस्वला स्त्री को इससे गर्भ न होने का भय होता है। अगर हो भी जाएगा तो पैदा होने वाली संतान भी विपरीत रति की इच्छुक पैदा होगी। प्रसूता को इससे पेट व कमर बढ़ जाने का खतरा हो जाएगा। मृगी स्त्री यदि वृष यानि बड़े लिंग वाले या अश्व यानि बहुत बड़े लिंग वाले पुरुष के साथ विपरीत रति करेगी तो उसे अवपाटिका नाम का रोग हो सकता है। गर्भवती का गर्भ इससे गिर सकता है। ज्यादा मोटी स्त्री इस कार्य में शीघ्र ही थकावट का अनुभव करने लगेगी।

इसलिए ऐसी स्त्रियों को विपरीत रति न करने की सलाह दी गई है। इसके साथ ही यह प्रकरण पूरा हुआ।

प्रस्तुत ब्लॉग में आपने पढ़ा कि स्त्री कामोत्तेजित हो चुकी स्त्री की पहचान क्या है? कामोत्तेजित हो जाने के बाद स्त्री से किन-किन विधियों से संभोग करना चाहिए। इसके अलावा विपरीत रति का प्रयोग किस प्रकार की स्त्रियों को नहीं करना चाहिए। अगले ब्लॉग में आप पढ़ेंगे मुख-मैथुन के बारे में। मुख-मैथुन का प्रयोग किस प्रकार के लोग करते हैँ तथा मुख-मैथुन करने की विधियां क्या-क्या हैं? मुख-मैथुन के क्या-क्या लाभ और क्या-क्या हानियां हैं।

Copywrite : J.K.Verma Writer

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