Top Secrets of Kamsutra -22 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-22 : मुख मैथुन कौन लोग करते हैं, किस प्रकार करते हैं व इसके लाभ-हानियां क्या हैं?

 मुख मैथुन कौन लोग करते हैं, किस प्रकार करते हैं व इसके लाभ-हानियां क्या हैं? 

            पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि जब स्त्री कामोत्तेजित हो जाती है तो उसकी पहचान क्या होती है तथा उस स्त्री के साथ संभोग किन-किन विधियों से किया जा सकता है। अब इस ब्लॉग में हम पढ़ेंगे कि मुख मैथुन क्या होता है, इसे किस प्रकार के लोग करते हैं, किन-किन विधियों से करते हैं तथा इसके लाभ और हानियां क्या हैं?

              आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि मुख मैथुन एक निंदनीय कर्म है तथा इसे प्राय: हिजड़ोंं में ज्यादा प्रचलित है। कामशास्त्र के आचार्यों के अनुसार यह संभोग क्रिया अशिष्ट, असामाजिक तथा अप्राकृतिक है। इस क्रिया का विरोध धर्म-शास्त्रों ने भी किया है। सभ्य समाज में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है।

                फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने बुरे संस्कारों और बुरे स्वभाव के कारण या फिर बुरी संगति के कारण इस गंदे काम को पसंद करते हैं। आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि कामशास्त्र में इसकी व्याख्या करना इसलिए आवश्यक है क्योकि यह भी एक संभोगिक क्रिया है। इसका सीधा संबंध भी कामवासना से है।  एक कामशास्त्री होने के नाते उनका कर्तव्य बनता है कि वे इसके बारे में विस्तार से बताएं तथा इसकी हानियों का जिक्र करके इसे न अपनाने की सलाह दें। उदाहरण के तौर पर वे आयुर्वेद शास्त्र का एक उदाहरण देते हैं, जिससे कुत्ते का मांस शक्तिवर्धक बताया गया है। वे कहते हैं कि इसका यह मतलब नहीं है कि वे लोग बल और बुद्धि के लिए कुत्ते का मांस खाना शुरू कर दें।

                अंत में वे यही कहते हैं कि मुख-मैथुन संभोग की ही एक क्रिया है। कई देशों में इसकी प्रथा है तथा कई लोग इसे स्वभाव से पसंद करते हैं, इसलिए इस पर प्रकार डालना आवश्यक है। अत: इस अध्याय में वे मुख-मैथुन के अलावा समलैंगिक संबंधों पर भी प्रकाश डालते हैं।

                    पिछले सभी ब्लॉग्स में हमने केवल दो वर्गों यानि स्त्री और पुरुष में होने वाली संभोग क्रियाओं का ही वर्णन किया है। इस ब्लॉग में उस तीसरे वर्ग का जिक्र कर रहे हैं, जो न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री। जिसे नपुंसक कहा गया है। आचार्य वात्स्यायन ने इसे तीसरी प्रकृति कहा है।

तीसरी प्रकृति के भेद :

तीसरी प्रकृति यानि  नपुंसक दो तरह के होते हैं। इसमें एक का शरीर तो पुरुष जैसा होता है तथा दूसरे का स्त्री जैसा। जिसका शरीर स्त्री जैसा होता है, उसके सभी अंग स्त्रियों जैसे होते हैं, केवल गुप्तांग नहीं होता। उसका गुप्तांग इतना विकसित नहीं होता, जिससे वह एक स्त्री की तरह संभोग करवा सके। जिसका शरीर पुरुष जैसा होता है, वह देखने में पुरुष जैसा ही होता है, केवल उसका गुप्तांग नाम-मात्र का होता है तथा उसमें कभी उत्तेजना नहीं आती। इसलिए वह संभोग नहीं कर सकता।

स्त्री जैसा रंग-ढंग :

जो नपुंसिका हो, उसे चाहिए कि वह स्त्री जैसे ही रंग-ढंग अपनाए। अपने आप को सजा-संवारकर रखे, स्त्रियों की तरह बाल बनाए व वस्त्र पहने, स्त्रियों की तरह ही लजाकर बारीक आवाज में बोले, धीरे-धीरे चले तथा स्त्रियों जैसे ही हाव-भाव रखे। उन्हीं की तरह ही सरलता, कोमलता व डरपोकपने को अपनाए।

मुख-मैथुन का स्वरूप :

जो संभोग क्रिया पुरुष अपने लिंग से स्त्री की योनि में डालकर करता है, वही जब नपुंसिका के मुंह में की जाए तो उसे औपरिष्टक या मुख मैथुन कहते हैं।

मुख-मैथुन का लाभ :

मुख मैथुन करवाने से नपुंसिका को क्या लाभ हो सकता है, इसका विवरण दिया जा रहा है। नपुंसिका यानि हिजड़ा स्त्री को चाहिए कि वह आलिंगन, चुंबर, नाखूनों व दांनों का प्रहार, मारपीट आदि विधियों द्वारा संभोग सुख प्राप्त करे तथा मुख-मैथुन द्वारा कमाई करे।

नपुुंसिका का चरित्र :

आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि जैसा चरित्र एक वैश्या का होता है, वैसा ही चरित्र एक नपुंसिका का होना चाहिए। अपने चाल-चलन को वैश्या जैसा रखकर वह शारीरिक आनंद भी प्राप्त कर सकती है और कमाई भी कर सकती है।

पुरुष रूपी नपुंसक :

पुरुष की आकृति वाले नपुंसक हिजड़े अपनी वासनाओं को छिपाए रखते हैं। तीसरी प्रकृति के होने के कारण उनकी भी बहुत इच्छा होती है कि ाकेई पुरुष उनके साथ शारीरिक संंबंध बनाए। आचार्य वात्स्यायन का मत है कि ऐसे नपुंसकों ाके चाहिए कि वे पुरुषों के चरण दबाने या मालिश इत्यादि करने का काम शुय कर दे ाकि उन्हें पुरुषों का साथ मिल सके तथा कमाई भी हो सके।

पैर दबाते समय या मालिश करते समय नपुंसक को चा हिए कि वह अपने शरीर का स्पर्श पुरुष के शरीर कसे करवाए। उसकी जांघों को सहलाए तथा परिचय बढ़ाने का प्रयास करे। धीरे-धीरे जब परिचय बढ़ जाए तो पुरुष की जांघों के जोड़ तक अपना हाथ पहुंचा दे। वहां धीरे-धीरे मसले तथा सहलाए।

अगर पुरुष का लिंग उत्तेजित हो जाए :

यदि ऐसा करने पर पुरुष का लिंग उत्तेजित हो जाए तो उसे हाथ से पकडक़र चंचलता का उलाहना देते हुए हंसे और कहे- अरे, आप तो बहुत चंचल हैं, जो आपका लिंग इतने से ही उत्तेजित हो गया। उसके बाद लिंग को मुट्ठी में दबाकर हिलाए-डुलाए, सहलाए तथा प्यार-दुलार दिखाए। अपने हाव-भाव से ऐसा जाहिर करे जैसे उसकी इच्छा लिंग को मुंह में लेने की है7

पुरुष का लिंग तभी उत्तेजित होता है, जब उसमें कामवासना भर जाती है। नपुंसक द्वारा की गई क्रियाओं को पुरुष समझ जाता है। पुरुष इस बात को जान जाता है कि यह नपुंसक मुख मैथुन कराना चाहता है। इतना जान लेने के बाद वह नपुंसक को मुख मैथुन करने के लिए कह देगा। यदि फिर भी न कहे तो नपुंसक को चाहिए कि स्वयं पुरुष के उत्तेजित लिंग को मुंह में भर ले तथा मुख मैथुन शुरू कर दे।

नखरे दिखाने शुरू कर दे :

यदि पुरुष मुख-मैथुन करने के लिए अपने मुंह से कहे तो नखरे दिखाने शुरू कर दे। कह दे कि वह ऐसे काम कभी नहीं करता। बाद में मुश्किल से तैयार होने का नाटक करे। इससे उसकी अलग से कमाई हो जाएगी।

मुख-मैथुन के भेद :

मुख मैथुन कराने की आठ क्रियाएं हैं, जिन्हें एक के बाद एक प्रयोग में लाना चाहिए। इन आठों विधियों के बारे में आगे बताया जा रहा है। नपुंसक को चाहिए कि वह इन आठों विधियों को एक-एक करके शुरू कर दे। प्रत्येक क्रिया को थोड़ा-थोड़ा करके छोड़ दे तथा पुरुष को आगे न करने के लिए कहे। तब पुरुष उसकी मिन्नतें करेगा। तब न खरे के साथ अगली क्रिया शुरू कर दे।

पुरुष को यह करना चाहिए :

पुरुष को भी चाहिए कि वह एक क्रिया के पूरी हो जाने पर उसे दूसरी क्रिया के बारे में कहे। दूसरी के पूरा हो जाने पर तीसरी के लिए कहे। इस प्रकार वह आठों क्रियाएं करवा ले। जब वह स्खलित हो जाए, तभी उन्हें बंद करवाए। लेकिन अगर पुरुष न कहके तो नपुंसक को चाहिए कि एक-एक करके वह मुख मैथुन की सभी क्रियाएं करे और उसे स्खलित कर दे।

आठ प्रकार की विधियां :

मुख मैथुन की जो आठ विधियां बताई गई हैं, वे दो प्रकार की होती हैं। पहली बाहरी और दूसरी भीतरी होती है।

1. बाहरी मुख मैथुन : पुरुष के लिंग के दो भाग होते हैं। एक हिस्सा मणि से ऊपर का होता है तथा दूसरी मणि के भीतर का होता है। जब मुख मैथुन मणिसे ऊपर का ही किया जाए तो उसे बाहरी मुख मैथुन कहते हैं।

2. भीतरी मुख मैथुन : जब मुख-मथुन में पूरे लिंग को ही प्रयोग में ले लिया जाए तो उसे भीतरी मुख मैथुन कहते हैं।

बाहरी मुख मैथुन तीन प्रकार होता है, जबकि भीतरी मुख मैथुन पांच प्रकार का। इन सभी के बारे में बारी-बारी से बताया जा रहा है।

बाहरी मुख-मैथुन की पहली विधि : निमित्त

पुरुश के लिंग को हाथ में पकडक़र नपुंसक को चाहिए कि उसका आगे का भाग अपने गोल-गोल किए हुए होठों पर रख ले तथा अपने मुंह को हिलाए। इस विधि को निमित्त मुख मैथुन कहा जाता है।

बाहरी मुख मैथुन की दूसरी विधि : पाश्र्वतोदष्ट

पुरुष के लिंग के अगले हिस्से को मुट्ठी में पकड़ ले। उसे होठों से इस प्रकार से दबाए कि कोई दांत न लगने पाए। ऊिर उसे चूमकर छोड दे और कहे - बस रहने दीजिए। मैं इससे ज्यादा नहीं कर पाऊंगा। इसे पाश्र्वतोदष्ट मुख मैथुन कहते हैं।

बाहरी मुख-मैथुन की तीसरी विधि : बहि:संदेश

यदि नायक फिर करने का आग्रह करे तो उसके लिंग के अगले हिस्से को मुंह में भर ले। लिंग को होठों में दबाकर उसे खींच-खींचकर चूसे। यह अगला हिस्सा नंगा होना चाहिए, जिसे लिंग की सुपारी कहा जाता है। इसे बहि:संदेश कहा जाता है।

भीतरी मुख-मैथुन की पहली विधि : अन्त:संंदंश

यदि बहि:संदेश क्रिया करने के बाद भी नायक उसे यह क्रिया जारी रखने को कहे तो लिंग का कुछ और हिस्सा अपने मुंह में भर ले। उसे चूमकर होठों से निगल ले और फिर बस कह दे। इसे अन्त:संदंश मुख मैथुन कहा जाता है।

भीतरी मुख मैथुन की दूसरी विधि : चुम्बतक

जिस प्रकार नीचे के होंठ को चूसा जाता है, उसी प्रकार लिंग के नंगे भाग यानि सुपारी को चूसना चुम्बतक मुख मैथुन कहा जाता है।

भीतरी मुख मैथुन की तीसरी विधि : परिमृष्टक

लिंग को नीचे के होंठ की तरह चूसते समय उस पर जीभ रगडऩा चाहिए तथा लिंग के छेद पर बार-बार जीभ मारने की क्रिया को परिमृष्टक मुख मैथुन कहा जाता है।

भीतरी मुख मैथुन की चौथी विधि : आम्रचूषितक

जिस प्रकार आम चूसा जाता है, ठीक उसी प्रकार लिंग के आधे भाग या पूरे भाग को मुंह में भरकर चूसने को आम्रचूषितक मुख मैथुन कहा जाता है।

भीतरी मुख -मैथुन की पांचवीं विधि : संगर

जितना पुरुष चाहे, उतने लिंग को मुंह में भरकर उसे होठों से दबाकर तब तक चूसना, जब तक कि वह स्खलित न हो जाए, संगर मुख मैथुन कहजाता है।

प्रहार व सीत्कार :

मुख मैथुन की आठों क्रियाएं कराते समय कम, मध्यम, तेज, जितनी भी कामवासना हो, उसी के अनुसार नपुंसक को प्रहार और सीत्कार भी करना चाहिए।

कुलटा स्त्रियों में मुख-मैथुन :

केवल नपुंसक या नपुंसिका ही मुख मैथुन नहीं करते, बल्कि कुछ विशेष प्रकार की स्त्रियां भी इस क्रिया का प्रयोग करते हैं। ऐसी स्त्रियों का वर्णन आगे दिया जा रहा है।

कुलटा, स्वैरिणी, परिचारिका और संवाहिका स्त्रियां भी मुख-मैथुन करती हैं। इन स्त्रियों के बारे में जानने के लिए नीचे दिए जा रहे विवरण को पढ़ें।

० कुलटा : जो अपने ही कुल में या अपने बराबर के कुल में व्यभिचार के लिए भटकती फिरे, उसे कुलटा कहा जाता है।

० स्वैरिणी : जो समान और असमान कुल का ख्याल छोडक़र आजाद घूमती है और किसी भी पुरुश से संभोग करवा लेती है, ऐसी स्त्रियों को स्वैरिणी कहा जाता है।

० परिचारिका : जो पहले किसी ने रखैल बना ली हो और बाद में छोड़ दी हो। जो खुली घूम रही हो ओर किसी नए पुरुष को  खोज रही हो, वह परिचारिका कहलाती है।

० संवाहिका : जो दूसरों के शरीर को दबाकर या मालिश करके जीविका चलाती है, उन्हें संवाहिका कहा जाता है।

ये चारों ही प्रकार की स्त्रियां मुख-मैथुन करती हैं।

मुख-मैथुन का विरोध : 

विभिन्न आचार्यांे का मत है कि मुख-मैथुन एक निंदित कर्म है। इसे नहीं करना चाहिए। धर्म-शास्त्र भी इसका निषेध करते हुए कहते हैं : मुख में कभी भी शुक्रपात नहीं करना चाहिए।

नीच-कर्म के चाहने वाले यदि उकसाने का प्रयास करें, तो भी नहीं करना चाहिए। यह क्रिया शास्त्र के खिलाफ है। जब यह क्रिया ही असभ्य है तो इसके करने वाले भी असभ्य ही कहलाएंगे।

इसके अलावा जिसके मुंह में मैथुन किया जाता है, बाद में उसके मुंह को चूमा नहीं जा सकता। ऐसा करने से घृणा होती है।

धर्मपत्नी में भूलकर भी नहीं :

कुलटा, स्वैरिणी, परिचारिका और संवाहिका - ये एक प्रकार की वैश्याएं ही होती हैं। इनके कामी नायक इनके मुंह में चाहे जो करते रहें, लेकिन किसी भी पुरुष को कभी भूलकर भी अपनी धर्मपत्नी से मुख-मैथुन नहीं करना चाहिए।

वशिष्ट जी ने कहा है : जो पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के मुंह में वीर्यपात करता है, उसके पित्तर पंद्रह सालों तक भोजन नहीं करते। 

अब जो जंगली हैं, सभ्यता से कोसों दूर हैं, उन्हें कुछ भी समझाना बेकार है। उनके लिए कोई शास्त्र मायने नहीं रखता।

प्राच्य देशों के लोग :

प्राच्य देशों के लोग, जिनमें आसाम, नागालैंड और अरुणाचल के शामिल हैं, वहां के लोग ऐसी स्त्रियों के साथ संभोग नहीं करते, जो मुख मैथुन करवाती हैं। इसलिए वे वैश्याओं और कुलटाओं से दूर ही रहते हैं।

अहिच्छत्र देश के लोग : 

अहिच्छत्र देश जिसमें कुमाऊं और उत्तर भारत शामिल है, वहां के लोग वैश्याओं को पसंद नहीं करते। अगर कामवासना से पीडि़त होकर कोई किसी वैश्या के पास चला भी जाता है तो वह उसका मुंह नहीं चूमता।

अवधवासी : 

अयोध्या प्रांत के लोग पवित्र-अपवित्र का कोई विचार नहीं करते। इस कारण वे संभोग के समय वैश्याओं का मुंह खूब चूमते हैं।

पटना प्रांत के लोग :

पटना प्रांत के लोग वेश्याओं के साथ संभोग तो करते हैं, परंतु अपनी इच्छा से मुख-मैथुन नहीं करते। यदि कोई वैश्या या कुलटा कहे तो कर लेते हैं, लेकिन बाद में फिर कभी उसका मुंह नहीं चूमते।

सूरसेन देश के लोग : 

सूरसेन देश जिसमें आगरा व मथुर आदि शामिल हैं, के लोग सब क्रियाओं को पवित्र मानकर मुख चुंबन तथा मुख मैथुन करते हैं। उन्हें संभोग की किसी भी क्रिया से घृणा नहीं होती।

स्त्रियों की पवित्रता :

कामशास्त्री धर्मपत्नी को भी विश्वास के लायक न मानकर उन पर संदेह करते हुए कहते हैं कि ऐसा कौन होगा, जो स्त्रियों के शील, शौच, आचार, चरित्र, विश्वास और कथन पर आस्था रखेगा? स्त्री जाति तो स्वभाव से ही मलिन बुद्धि वाली होती है, लेकिन फिर भी छोडऩे लायक नहीं होती। इसलिए इनकी पवित्रता लोकाचार के अलावा धर्म-शास्त्रों में भी नहीं ढूंढऩी चाहिए।

लेकिन धर्मशास्त्र का कथन है : दूध दुहते समय बछड़ा पवित्र होता है। हिरनों को पकड़ते समय शिकारी कुत्ता पवित्र होता है। फलों को कुतर-कुतरकर गिराते समय पक्षी पवित्र होता है और संभोग के समय स्त्रियां पवित्र होती हैं। उनका मुंह चूमने में कोई दोष नहीं है।

वात्स्यायन का निष्कर्ष :

आचार्य वात्स्यायन का मत है कि शिष्ट लोग स्त्रियों के मुख चुंबन के विरुद्ध मत रखते हैं और धर्मशास्त्र संभोग के समय स्त्री के मुख-चुंबन को उचित बताते हैं। ऐसी स्थिति में जैसा स्थान हो, जैसी प्रथा हो, जैसी इच्छा हो, उसके अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।

पुरुषों का मुख-मैथुन :

जब तक मुखमैथुन के बारे में जितना भी बताया गया है, वह सब करने वाली स्त्रियां हैँ या फिर न नपुंसक। अब पुरुषों के मुख-मैथुन का जिक्र करते हैं।

कानों में कुंडल आदि धारण कर सजे-धजे रहने वाले कुछ लडक़े भी मुख-मैथुन करते हैं। इनसे वे लोग ही मुख मैथुन कराते हैं, जिनमें कामवासना की कती रहती है या जिन्हें स्त्रियां नहीं मिलतीं या जिनकी आयु ढ़ल चुकी है या जो बहुत ज्यादा मोटे हैं। उन्हें ही इस कार्य में प्रसन्नता मिलती है।

आपस में मुख-मैथुन : 

कुछ विलासी किस्म के लोग, जिन्हें स्त्री प्राप्त नहीं होती, एक दूसरे को स्खलित करने के लिए मैत्री भाव से मुख-मैथुन करना तय कर लेते हैं। वे एक दूसरे को कहते हैं - पहले तूं मेरा कर। बाद में मैं तेरा करता हूं। या फिर वे करवट बदलकर एक दूसरे का एक ही समय में मुख-मैथुन करते हैं। इसी प्रकार जिन स्त्रियों को संभोग के लिए पुरुष प्राप्त नहीं होते, वे भी परस्पर विश्वास से एक दूसरे की योनि में जीभ से मुख-मैथुन करने लगती हैं।

स्त्री द्वारा पुरुष से मुख-मैथुन कराना :

जिस प्रकार पुरुष स्त्रियों के मुंह में मैथुन करते हैं, उसी प्रकार स्त्रियां भी पुरुषों के मुंह से मैथुन क्रिया करवाती हैँ। इसके करने वाले अधिकतर सेवक लोग ही होते हैं।

इसकी विधि यही है कि जिस प्रकार पुरुष कन्या के मुख को चूमता है, उसी प्रकार स्त्री की योनि को चूमे। अगर नायिका कन्या हो तो निमित्त चुंबन का प्रयोग करे। यदि दूसरी स्त्री हो तो सम चुंबन का प्रयोग किया जा सकता है।

स्त्री पुरुष आपस में :

यदि स्त्री अपने नौकर या चेले से मुख-मैथुन करवा रही हो, तो केवल वही इस कर्म को करता है। यदि वह अपने पति या प्रेमी से करवा रही हो, तो वह भी अपने मुंह द्वारा उसके साथ यह क्रिया करती है। वे दोनों बारी-बारी से या फिर एकसाथ ही इस क्रिया को करते हैं। वे एक साथ इस काम को कैसे करते हैं, इसका वर्णन आगे दिया जा रहा है।

करवट बदलकर पुरुष स्त्री की जांघों पर अपना सिर रख देता है तथा स्त्री पुरुष की जांघों पर अपना सिर टिका देती है। उसके बाद वे अपने मुंह व जीभ द्वारा एक दूसरे के गुप्तांग के साथ मुख-मैथुन की क्रिया करते हैं। मुख मैथुन की इस क्रिया को कोकिल कहा जात है क्योंकि ऐसा करते समय वे कव्वों जैसे दिखाई पड़ते हैं।

वैश्याएं बुरे पुरुषों को क्यों चाहती हैं :

जो पुरुष शिष्ट, सभ्य, कला-कौशल, गुणी और चतुर हैं, उन्हें अधिकतर वैश्याएं पसंद नहीं करतीं। वे घरेलू नौकरों, महावतों व दुष्ट व्यक्तियों से अधिक प्रेम करती हैं क्योंकि ये उनके साथ गुदा-मैथुन या मुख-मैथुन जैसे बुरे कर्म भी करते हैं।

शिष्ट व्यक्ति दूर रहें :

जो वेद-शास्त्रों को जानने वाला ब्राह्मण हो, जो किसी राज्य का प्रधान होकर शासन चलाता हो, जिसे दुनिया वाले बड़ा पुरुष मानें या फिर जो व्यक्ति शिष्ट या लोकप्रिय हो, उसे चाहिए कि वह वैश्याओं से मुख मैथुन जैसा काम न करवाए।

वैश्याएं अपने चाहने वालों को दूसरों के मन की बातें बता देती हैं। वे इस बात को फैला सकती हैं तथा इससे उस व्यक्ति के मान-सम्मान को ठेस पहुंचेगी। पूरी दुनिया जान जाएगी कि वह व्यक्ति मुख-मैथुनी है। मुख-मैथुनी व्यक्ति को जंगली, गिरा हुआ तथा असभ्य कहा जाता है।

शास्त्र के बारे में :

जिस बात को शास्त्र कहता है, वह प्रयोग करने के लिए उचित हो, यह बात आवश्यक नहीं है। शास्त्र तो विषय का पूरा विवरण देता है। जिसकी जिसे आवश्यकता हो, वह उसमें से अपनी जरूरत की चीज ले जे। यही कारण है कि जो सभ्य लोग हैं, वे संभोग की अच्छी विधियों को अपनाते हैँ तथा जो असभ्य लोग हैं, वे मुख-मैथुन तथा गुदा मैथुन जैसी असभ्य विधियों का प्रयोग करते हैं।

प्रयोग बेकार नहीं है :

कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जिन्हें पवित्र और अपवित्र में कोई भेद दिखाई नहीं देता। कुछ देश जैसे लाट और सिंधु आदि ऐसे भी हैं, जहां इन बुरी विधियों का प्रचलन है। कुछ अवसर ऐसे भी आ जाते हैं, जब अपनी जान बचाने के लिए या सम्मान बचाने के लिए किसी से मुख-मैथुन करवाना पड़ता है। अत: ऐसी दशा में वे प्रयोग किये जा सकते हैं।

ऐसे लोगों के लिए मुख-मैथुन बुरा नहीं बल्कि उपयोगी है। इसलिए कामशास्त्र में इसका वर्णन बेकार नहीं है। इसलिए देश, शास्त्र, समय तथा इच्छा को ध्यान में रखकर जो भी लाभदायक हो, उन्हीं विधियों या प्रयोगों को अपनाना चाहिए और जो हानिकारक हों, उन्हें त्याग देना चाहिए।

मुख-मैथुन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे बहुत ही छिपाकर किया जाता है और इसे करने में जो  प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें भी छिपाकर रखा जाता है। मनुष्य चाहे विद्वान हो या मूर्ख, जब उस पर कामवासना हावी हो जाती है, तो वह जोश में आकर कभी भी, कुछ भी कर सकता है। कौन व्यक्ति, कब क्या कर डालेगा, इसे कोई भी नहीं जानता।

इस प्रकार मुख-मैथुन का यह पूरा चैप्टर यहीं समाप्त होता है। अगले ब्लॉग में आप पढ़ेंगे कि संभोग से पहले और बाद में क्या-क्या काम करने चाहिएं ताकि संभोग का संपूर्ण आनंद लिया जा सके।

Copywrite : J.K.Verma

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jkverma777@gmail.com


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