Top Secrets of Kamsutra -17 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-17 : संभोग क्रिया के दौरान पुरुषों द्वारा मारपीट, नोंच-खरोंच व स्त्रियों का सीत्कार

 संभोग क्रिया के दौरान पुरुषों द्वारा मारपीट, नोंच-खरोंच व स्त्रियों का सीत्कार

पिछले ब्लॉग में आपने उन संभोग क्रियाओं के बारे में विस्तार से पढ़ा, जिनका प्रयोग निम्र स्तर या पशु स्वभाव वाले लोग करते हैं। इस ब्लॉग में हम पढ़ेंगे कि संभोग क्रिया के जोश को और बढ़ाने के लिए हल्की मारपीट, नोंच-खरोंच कैसे की जाती है तथा स्त्रियां जोश में आकर सीत्कार कैसे कर उठती हैं।

कामशास्त्र के विभिन्न आचार्यों का कहना है कि संभोग के समय पुरुष जब पूरी तरह से जोश में आ जाता है तो स्त्री के कंधों पर, स्तनों के बीच के भाग  पर, पीठ में, जांघों पर और नितंबों पर प्रहार करता है। स्त्री इन अंगों पर मार लगाने से सीत्कार करती है या कराहती है, फिर आनंद से भर जाती है। पुरुष उनके कोमलांगों पर चपत लगाकर, थपथपाकर या चुटकी काटकर उत्तेजित करता है।

संभोग के समय में आलिंगन, चुंबर, नखक्षत, दंतकर्म का वर्णन पिछले ब्लॉग्स में किया गया है। अब पढ़ें कि काम उत्तेजना को बढ़ाने के लिए पुुरुष किस प्रकार  नोंचते-खरोंचते हैं, थप्पड़ या मुक्के मारते हैं। इस प्रकार की मारपीट संभोग क्रिया का एक अंग है। 

कामशास्त्र के आचार्यों का कहना है कि संभोग के समय मारपीट काम का ही एक अंग है क्योंकि काम स्वभाव से ही विवाद पैदा करने वाला तथा कुटिलता से भरा है।

मारपीट करने के स्थान :-

० दोनों कंधे।

० दोनों स्तनों के बीच।

० पीठ।

० दोनों जांघें।

० सिर।

० बगलें।

इस मारपीट को प्रहणन कहा जाता है। ये प्रहणन चार प्रकार के होते हैं।

1. अपहस्तक यानि उल्टी हथेली से थाप मारना।

2. प्रसृतक यानि हथेली फैलाकर चोट मारना।

3. मुष्टि यानि हाथ का मुक्का बनाकर मारना

4. समतल यानि हाथ को बिल्कुल सीधा करके मारना

स्त्री का सीत्कार करना :

जब स्त्री प्रहार के दर्द को सह नहीं पाती, तो वह आह..आह, ओह..ओह या सी..सी की आवाज करती है, जिसे सीत्कार कहा जाता है। सीत्कार प्रहणन से पैदा होता है। जब प्रहणन से स्त्री को तकलीफ होती है, तो उसके मुंह से अपने आप ही सीत्कार निकलती है, इसलिए इसे दु:खरूप कहा गया है।

विरुत यानि संभोग के समय निकलने वाली अन्य आवाजें

सीत्कार के अलावा भी संभोग के समय स्त्री के मुंह में से कुछ मंद-मंद आवाजें निकलती हैं। ये आवाजें संभोग की प्रचंड अवस्था में अपने आप निकलने लगती हैं। इन आवाजों को विरुत कहा जाता है।

विरुत आठ प्रकार के होते हैं। ये संभोग के समय अपने आप मुंह से निकलते हैं, चाहे प्रहणन किया जाए, चाहे न किया जाए। सीत्कार केवल प्रहणन से ही निकलता है। यही विरुत और सीत्कार में  अंतर है।

विरत ध्वनियां आठ प्रकार की होती हैं। इनके नाम व विवरण आगे बताए जा रहे हैंञ

1. हिंकार : संभोग के समय जब स्त्री की नाक से हिं..हिं..हिं की आवाज निकलती है, तो उसे हिंकार ध्वनि कहा जाता है।

2. स्तनित : जब पुरुष संभोग क्रिया में पूरे जोश में आकर स्त्री की योनि में धक्के पर धक्के लगाता है, तो स्त्री के कंठ से हुं..हुं..हुं की आवाज निकलती है, जिसे स्तनित ध्वनि कहा जाता है।

3. फूजित : जब संभोग क्रिया जोरों पर होती है, तो काम से आतुर स्त्री धीरे-धीरे हं..हं..हुं..हुं.. की आवाज निकालती है, उसे फूजित ध्वनि कहा जाता है।

4. रुदित : संभोग के समय में जब स्त्री धीरे-धीरे सिसककर रोने लग जाती है, तो उसे रुदित ध्वनि कहा जाता है।

5. सूत्कृत : संभोग कराते-कराते जब स्त्री थक जाती है, तो वह लंबी-लंबी सांसें भरकर सूं..सूं.. की धीमी-धीमी आवाजेंं करने लगती है तो उसे सूत्कृत कहा जाता है।

6. दूत्कृत : स्त्री जब अपनी जीभ और तालू को मिलाकर चिट-चिट या चिप-चिप की आवाज निकालती है, तो उसे दूत्कृत कहते हैं।

7. फूत्कृत : स्त्री की जीभ और तालू के मिलने से जो डुब्ब-डुब्ब की आवाज निकलती है, उसे फूत्कृत कहते हैं।

8. कूजित : जब स्त्री संभोग क्रिया में कंठ से कूं..कू..की ध्वनि निकालती है, उसे कूजित कहते हैं।

अन्य आवाजें :

संभोग के अंत में जब स्त्री स्खलित होने को आती है, तो वह अन्य ध्वनियां भी मुंह से निकालती है जैसे - हाय री, मरी री, अरी मरी री, हाय छोड़ दो, अब बस करो, मुझे जाने दो, बस-बस मर गई, हाय मां, ओ मां, हाय मार ही डालोगे क्या? इत्यादि।

पक्षियों की आवाजें : 

आचार्य वात्स्यायन का मत है कि ऐसी ध्वनियों के अलावा कभी-कभी स्त्री कबूतर, कोयल, हारिल, तोते, पपीहे, हंस, कलहंस, तीतर, बटेर आदि की आवाजें भी निकालती है।

मुक्का मारने का ढंग : 

जिस समय स्त्री पुरुष की गोद में बैठी हो, तो उस समय उसकी पीठ पर मुक्का मारा जा सकता है, क्योंकि इस दिशा में यही उचित है। दूसरा प्रहार उचित नहीं है।

मुक्का खाने के बाद :

मुक्का खाने के बाद स्त्री को चाहिए कि उसे स्तनित, कूजित और रुदित ध्वनियां निकालते हुए पुरुष की पीठ पर उसी प्रकार से मुक्का ठोंक देना चाहिए।

स्तनों के बीच में प्रहार :

जब पुरुष स्त्री की योनि में लिंग प्रवेश कर चुका हो, तो उसे चाहिए कि वह स्त्री के दोनों स्तनों के बीच वाले स्थान पर हाथों से प्रहार करे।

प्रहारों का कम ज्यादा करना :

संभोग समय के आरंभ में हल्के हाथ से प्रहार करना चाहिए, फिर ज्यों-ज्यों कामवासना बढ़ती जाए, प्रहारों की गति को बढ़ा देना चाहिए। तब तक प्रहार करते रहना चाहिए, जब तक कि स्त्री स्खलित न हो जाए।

सिर, जांघें और हृदय - इन तीन स्थानों पर यदि सही ढंग से प्रहार न किया जाए तो देर से स्खलित होने वाली स्त्रियां भी जल्दी स्खलित हो जाती हैं। कहा जाता है कि ये तीनों स्त्री की कामवासना के स्थान हैं।

सीत्कारों का समय :

प्राय: ऐसा होता है कि स्त्री हाथ से किए गए इन प्रहारों को पसंद नहीं करती तथा लडऩे लग जाती है। जब पुरुष को चाहिए कि वह फूत्कृत ध्वनि के साथ उसके सिर पर अपनी हथेली से प्रहार करे।

वार सहने वाली के काम :

 सिर पर वार होने से स्त्री को उसी समय कूजित ओर फूत्कृत ध्वनियां करनी चाहिएं। ये दोनों ध्वनियां अन्तर्मुख से करनी चाहिएं। कूजित में कूं..कूं.. की आवाज आती है और फूत्कृत में फू..फू..की आवाज आती है।

रुदन का समय :

संभोग क्रिया के अंत में थक जाने पर जब तेजी से सांस ऊपर-नीचे को होने लगती है, तो उसे रोकना नहीं चाहिए। स्खलित होने के बाद नाडिय़ां थककर शिथिल पड़ जाती हैं। उस समय जो हांफना होता है, उसे रुदन कहा जाता है।

पुरुष को भी यही करना चाहिए : पुरुष के चूमने पर, नोंच-खरोंच करने पर स्त्री जिस प्रकार की आवाज निकाले, पुरुष को भी वैसी ही आवाज निकालनी चाहिए।

जब पुरुष कामवासना के बढ़ जाने के कारण बार-बार  प्रहार करे तो उस समय स्त्री के लिए अरी मां, ऐसा न करो, बस-बस हो लिया, छोड़ दो जैसे शब्दों का प्रयोग करना उचित है। ऐसे में कबूतर जैसे पक्षियों की बोली भी बोली जा सकती है।

जब स्खलित होने का समय आ जाए तो जांघों, कूल्हों तथा बगलों में जल्दी-जल्दी हाथ मारने चाहिएं। अगर हाथ मारने में देरी की गई तो स्खलित होने में भी देर हो जाएगी।

सीत्कार के शब्द :

जब स्खलित होने का समय आ जाए तो स्त्री को लावक और हंस की आवाज करनी चाहिए। ये आवाजें मीठी होती हैं। मारपीट और सीत्कार के संबंध में आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि कठोरता और साहस पुरुषों का सहज स्वभाव है तथा असमर्थतता, पीडि़त होना, पीड़ा रोकना और कमजोरी स्त्रियों का स्वाभाविक गुण है।

इसलिए संभोग के समय पुरुष स्त्री पर प्रहार करता है तथा वह सी..सी.. करती रहती है। तभी तो कहा गया है कि मारपीट पुरुशों में रहती है तथा सीत्कार स्त्रियों में रहता है।

इस ब्लॉग में आपने पढ़ा कि संभोग क्रिया के दौरान जोश में आकर पुरुष किस तरह स्त्रियों के विभिन्न अंगों पर मारपीट करते हैं तथा स्त्रियां किस तरह से सीत्कार करती हैं यानि विभिन्न तरह की आवाजें निकालती हैं।

इस ब्लॉग में जो मारपीट की विधियां बताई गई हैं, वे सामान्य विधियां हैं, जिसमें स्त्री को अधिक पीड़ा नहीं होती और संभोग का आनंद बढ़ता है। आगामी ब्लॉग में मैं आपको संंभोग के दौरान ऐसी मारपीट के बारे में बताऊंगा जिसे आम स्त्रियां प्राय: सहन नहीं कर पातीं, उन्हें बहुत पीड़ा होती है और उनकी जान तक जा सकती है। 

Copywrite : J.K.Verma Writer

Contact : 9996666769

jkverma777@gmail.com


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