Top Secrets of Kamsutra -18 : कामसूत्र के टॉप सीक्रेट्स-18 : संभोग क्रिया के दौरान की जाने वाली दर्दनाक मारपीट
संभोग क्रिया के दौरान की जाने वाली दर्दनाक मारपीट
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि संभोग क्रिया के दौरान पुरुषों द्वारा स्त्रियों से की जानी वाली हल्की मारपीट के बारे में तथा स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले सीत्कार के बारे में। यह भी बताया गया कि ऐसी क्रियाओं से संभोग का आनंद बढ़ जाता है। अब इस ब्लॉग में संभोग क्रिया के दौरान की जाने वाली ऐसी मारपीट के बारे में बताया जा रहा है, जिसे हर कोई सहन नहीं कर सकता। ऐसी मारपीट कई बार जानलेवा भी साबित हो सकती है।
पिछले ब्लॉग में मैंने संभोग के दौरान पुरुष द्वारा स्त्री से की जाने वाली मारपीट का ही जिक्र किया था। लेकिन इसका उल्टा भी हो सकता है। यानि विपरीतता भी हो सकती है। देश, काल और परिस्थितियों के कारण या फिर संभोग की चरम-सीमा पर पहुंचकर स्त्री भी कठोर बनकर पुरुष पर प्रहार कर सकती है। ऐसे में पुरुष भी सिसियाने लगता है यानि सीत्कार करने लग जाता है। लेकिन यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रहती। अंत में फिर वैसी ही स्थिति बन जाती है।
पिछले ब्लॉग में मारपीट करने के चार ढंग बताए गए थे। इस अध्याय में चार अन्य प्रकार से मारपीट के उपाय बताए जा रहे हैं।
1. छाती पर कीला मारना।
2. सिर पर कर्तरी मारना।
3. गालों में विद्धा मारना।
4. स्तनों व बगलों में संदंशिका मारना।
मारपीट की ये विधियां दक्षिण देश में प्रसिद्ध हैं। वहां की युवतियों में छाती पर कीला तथा उसके कार्य देखे जा सकते हैं। जिस देश का जैसा आचार-व्यवहार हो, वह वहीं के रहने वालों के लिए अनुकूल होता है। सबके लिए नहीं।
वात्स्यायन मुनि का कहना है कि स्त्री की कोमलता, इच्छा व सहनशक्ति का अंदाजा लगा लेने के बाद ही पुरुष को उस पर प्रहार करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि ऐसे प्रहार उसके लिए आनंदप्रद होने की बजाय दु:खदायी बन जाएं।
अब इन चार प्रकार की मारपीट के बारे में भी विस्तार से जान लेते हैं।
1. तर्जनी और मध्यमा ऊंगली के ऊपर अंगूठा चढ़ा देने से वह कीला बन जाता है। इसे स्त्री की छाती पर मारा जाता है। यह स्त्री के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है।
2. कर्तरी एक नृत्य मुद्रा है। उस मुद्रा में और कामशास्त्र की कर्तरी मुद्रा में कोई अंतर नहीं है। यह दो प्रकार की होती है। पहली मुद्रा फैली हुई ऊंगलियों वाली होती है तथा दूसरी मोड़ी हुई ऊंगलियों वाली होती है। इनसे सिर पर प्रहार किया जाता है।
3. तर्जनी और मध्यमा या मध्यमा और अनामिका के बीच में से अंगूठा निकालकर जो मुट्ठी बनाकर मारी जाती है, उसे विद्धा कहते हैं। इसे स्त्री केक स्तनों पर तथा बगलों में मारा जाता है।
4. सांप, बिच्छू या मधुमक्खी के डंक के समान स्त्री के कोमल अंगों को संडासी की तरह ऊंगलियों को बनाकर खींचना या फिर किसी अंग की नस को पकडक़र डंक मारना संदंशिका कहलाता है। इससे स्त्री को भयंकर पीड़ा होती है। वह चीखने लगती है, उसका अंग सूज जाता है तथा खून बहने लगता है। वात्स्यायन कहते हैं कि इतना कुछ हो जाने पर भी ये मारपीट के ढंग दक्षिण देश के लोगों को बहुत प्रिय लगते हैं। वहां इनकी प्रशंसा होती है।
वात्स्यायन का मत :
दक्षिण के लोगों के जो ये प्रहणन यानि मारपीट के ढंग हैं, उनका प्रयोग दक्षिण को छोडक़र कहीं और कहीं भी नहीं करना चाहिए, जो निर्दयी प्राणियों की करतूत होगी, वह अवश्य दुख पहुंचाएगी। जिन कामों को दुष्ट लोग करते हैं, वे कभी भी सज्जनों के करने लायक न हीं होते, इसलिए इन कामों से दूर ही रहना चाहिए।
वे कहते हैं कि जिसके लगते ही दूसरे के प्राण निकल जाएं या शरीर के अंग खराब हो जाएं, ऐसा पयोग तो किसी को भी किसी भी स्थान पर भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
घातक वारों से होने वाली हानियां :
घातक वारों से होने वाली हानियों के बारे में आचार्य वात्स्यायन ने कुछ उदाहरण देकर समझाया है।
चोलराज द्वारा चित्रसेना की हत्या :
संभोग करते-करते चोल महाराज ने चित्रसेना नाम की एक वैश्या को मार डाला था। चित्रसेना अत्यंत कोमल थी। जब राजा ने उसका कसकर आलिंगन किया तो उसके शरीर में दर्द होने लगा। उसने अपने दुख को राजा के सामने प्रकट भी किया परंतु राजा ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। चित्रसेना धीरे-धीरे कोमलता से संभोग करने लायक थी परंतु कामवासना से अंधे हुए राजा ने न केवल उसके साथ निर्दयतापूर्वक संभोग किया, बल्कि मुक्के का कीला बनाकर उसकी छाती में ठोंक मारा। चित्रसेना उसे सह न सकी और उसने प्राण त्याग दिए।
शातवाहन ने महादेवी मलवती को मारा :
कुन्तल देश के शतकर्ण के पुत्र शातवाहन ने महादेवी मलयवती को कर्तरी से मार डाला। मदनोत्सव के दौरान शातवाहन को सजी-धजी महादेवी मलयवती मिल गई। शातवाहन ने उसे आलिंगन में ले लिया तद्यथा उसके साथ संभोग करना चाहा। मलयवती ने उसे बहुत रोका। उसे बहुत समझाया कि वह बहुत ही कम उम्र की थी तथा संभोग के लायक नहीं थी परंतु शातवाहन तो कामवासना में दीवाना हो गया था। इस कारण उसने महादेवी मलयवती के सिर में बड़े जोर से कर्तरी जमा दी। मलयवती उसे सह न सकी और उसने वहीं पर प्राण त्याग दिए।
नटी को कानी करने का मामला :
कुपाणी नरदेव ने विद्धा का बुरी तरह से प्रयोग करके नटी को काना कर दिया था। नरदेव पांडयराज का सेनापति था। शस्त्रों का अभ्यास करने से उसके हाथ काफी कठोर हो गए थे। एक बार उसने राजकुल में चित्रलेखा नाम की एक नटी को नाचते हुए देखा। वह उस पर मोहित हो गया। सेनापति तो वह था ही, उसने उस नटी के साथ संभोग करने का मौका प्राप्त कर लिया। कामवासना बहुत भडक़ जाने के दौरान उसने चित्रलेखा के गाल पर अपने मजबूत हाथ से विद्धा का प्रयोग किया। वह हाथ उसके गाल पर लगने की बजाय उसकी आंख पर लग गया। जिससे उसकी आंख चली गई और चित्रलेखा कानी हो गई।
कामी दो प्रकार के होते हैं :
पहले प्रकार के कामी वे होते हैं, जिन्हें कामशास्त्र का ज्ञान होता है। उन्हें इस बात का ज्ञान होता है कि संभोग के समय कौन-कौन सी विधि आनंददायक होती है और कौनसी कष्टदायक। ऐसे लोग कोई ऐसा कार्य नहीं करते, जिसका परिणाम बुरा होता हो।
दूसरे प्रकार के कामी वे होते हैं, जिन्हें कामशास्त्र का ज्ञान नहीं होता, जो सिर्फ रंग-रंगीले होते हैं। जिन्हें नहीं पता होता कि संभोग की कौनसी विधि आनंद देने वालीहोती है और कौनसी कष्ट देने वाली। वे ऐसी विधियों का प्रयोग कर बैठते हैं, जो बाद में उनके लिए दुखदायी साबित होती है।
पहले प्रकार के कामी कामवासना के प्रचंड होने पर भी गलत व्यवहार नहीं करते, जबकि दूसरे प्रकार के कामी मामूली कामवासना के होते हुए भी गलत व्यवहार कर बैठते हैं।
संभोग करते समय मनुष्य का मन-मस्तिष्क भटक जाता है। उस समय वे ऐसे-ऐसे कार्य कर जाते हैं, जो कभी सपने में भी नहीं सोचे होते।
घोड़े जैसा हाल :
घोड़ा जब दौडऩा शुरू करता है, तो पहले उसकी चाल बहुत धीमी होती है, जो बाद में बढ़ती चली जाती है। जब वह अपनी पूरी गति से दौडऩे लगता है तो वह रास्ते में आने वाले खड्डे, खाई, खंभे या पेड़ की परवाह नहीं करता। वह केवल दौड़ता चला जाता है। ठीक यही हाल काम से अंधे हुए स्त्री-पुरुषों के साथ होता है। जब वे संभोग के समय अपनी पूरी गति से दौड़ रहे होते हैं, तो बिना किसी बुरी नतीजों की परवाह किए नाखूनों का प्रहार, दांतों का प्रहार व हाथ-पैरों का प्रहार करने लगते हैं।
कामकला के ज्ञाता का कर्तव्य :
जिस पुरुष को कामकला का ज्ञान है, उसे चा हिए कि वह जिस स्त्री से संभोग करना हो, पहले उसके गुण और स्वभाव को परख ले। यह जान ले कि उस स्त्री की कामवासना किस स्तर की है। उसकी कोमलता, उसकी कामवासना की प्रचंडता और सहनशक्ति को समझकर अपनी शक्ति का भी अनुमान लगाना चाहिए तथा उसके बाद ही संभोग क्रिया में लगना चाहिए।
संभोग के समय की सभी क्रियाएं हर समय और हर स्त्री के साथ नहीं करनी चाहिएं। स्त्रियों की इच्छा, अनुकूलता, स्वभाव, गुण-दोष तथा देशाचार का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। इसी के साथ ही संभोग क्रिया के दौरान मारपीट किए जाने व सीत्कार किए जाने वाला यह अध्याय यहीं पर पूरा होता है।
आगामी ब्लॉग में हम पढ़ेंगे कि आचार्य वात्स्यायन ने जिन विशेष संभोग क्रियाओंं का जिक्र किया है, उसका हमारे वेद किस समर्थन करते है। वेदों में इन आसनों के बारे में क्या कहा गया है?
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